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7 साल से जेल में, लेकिन हत्या किसकी? दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा सवाल, आरोपी को मिली जमानत

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7 साल से जेल में, लेकिन हत्या किसकी? दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा सवाल, आरोपी को मिली जमानत

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Delhi High Court News: दिल्ली हाईकोर्ट में पेश एक हत्या का मामला ऐसा निकला जिसने न केवल न्याय प्रणाली को झकझोर दिया, बल्कि जांच एजेंसियों की गंभीर लापरवाही को भी उजागर कर दिया. हत्या के आरोप में 2018 से जेल में बंद मंजीत कार्केटा को अदालत ने आखिरकार जमानत दे दी, क्योंकि सात साल बाद भी यह तय नहीं हो सका कि मारा गया व्यक्ति आखिर था कौन.

यह जांच अदालत की अंतरात्मा को झकझोरती है यह टिप्पणी दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस गिरीश कथपालिया ने उस समय की जब सामने आया कि शव की पहचान आज तक नहीं हो सकी है और जिसे अंतिम बार मृतक के साथ देखा गया बताया गया था, वह महिला (सोनी उर्फ छोटी) जीवित निकली.

मौत हुई लाश भी मिली लेकिन नाम नहीं
यह घटना साल 2018 की है, जब एक शव टुकड़ों में बरामद हुआ. पुलिस ने दावा किया कि शव सोनी उर्फ छोटी का है और हत्या के आरोप में मंजीत को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन कुछ समय बाद सोनी जीवित पाई गई. इसके बाद न सिर्फ पुलिस की थ्योरी ध्वस्त हो गई, बल्कि यह भी स्पष्ट हो गया कि पुलिस सात साल से एक ऐसे केस में आरोपी को जेल में रखे हुए थी, जिसमें मृतक की शिनाख्त तक नहीं हुई.

पांच चार्जशीट, लेकिन कोई जवाब नहीं
इस मामले में पुलिस ने पांच बार चार्जशीट दाखिल की, लेकिन हर बार सवाल वही रहा, मरा कौन? जवाब में सन्नाटा. अदालत ने जांच की गुणवत्ता पर तीखा सवाल उठाते हुए कहा, “यह सिर्फ जांच अधिकारी नहीं, बल्कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी जवाबदेह हैं जिन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाने में भारी चूक की.”

प्रोसिक्यूटर के तर्क और कोर्ट का जवाब
सरकारी वकील ने दावा किया कि आरोपी की लोकेशन घटनास्थल पर थी और शव को फेंकने में जो बैग इस्तेमाल हुआ, वह मंजीत के पास से बरामद हुआ था. लेकिन बचाव पक्ष ने बताया कि मोबाइल लोकेशन महज टॉवर कवरेज के आधार पर तय की गई थी, जो कि बहुत व्यापक क्षेत्र होता है और कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है.

आखिरकार मिला न्याय
अदालत ने कहा सिर्फ इसलिए कि मृतक की पहचान नहीं हो सकी, एक व्यक्ति को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता. कोर्ट ने मंजीत को 10 हजार के निजी मुचलके और इतने ही राशि के एक जमानती पर तुरंत जमानत देने का आदेश दिया. यह मामला केवल एक जमानत पर खत्म नहीं होता. यह सवाल खड़ा करता है kf क्या हम उस सिस्टम का हिस्सा हैं, जो किसी अनजान लाश के लिए एक आदमी को सात साल सलाखों के पीछे रखता है और फिर भी यह नहीं जान पाता कि मरा कौन.